बिलासपुर के गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस बार होली के लिए खास तैयारी की है। ग्रामीण प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक विकास विभाग के छात्रों ने इको-फ्रेंडली हर्बल गुलाल तैयार कर बाजार में उतारा है। यह गुलाल न केवल त्वचा के लिए सुरक्षित है, बल्कि पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। कम लागत में तैयार यह गुलाल छात्रों को आर्थिक रूप से भी मजबूत बना रहा है। स्वालंबी छत्तीसगढ़ योजना के तहत छात्रों को स्वरोजगार के नए अवसर दिए जा रहे हैं। ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग की छात्रा रुचि चौबे ने बताया कि उन्हें प्राकृतिक गुलाल बनाने का प्रशिक्षण मिला है। इसमें लाल भाजी, चुकंदर, हल्दी और अन्य औषधीय पौधों का उपयोग किया जाता है। इसे मिक्सर ग्राइंडर में पीसकर, धूप में सुखाने के बाद अरारोट के आटे में मिलाया जाता है, जिससे इसका टेक्सचर और भी मुलायम हो जाता है।छात्रों का कहना है कि यह गुलाल पूरी तरह चिकना और हल्का होता है, जिससे त्वचा पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। इसे विभिन्न रंगों में तैयार कर अच्छी पैकिंग के साथ बाजार में बेचा जा रहा है। इसकी बढ़ती मांग से छात्रों को अच्छा मुनाफा हो रहा है, जिससे वे अपनी पढ़ाई का खर्च भी निकाल रहे हैं।गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. दिलीप कुमार ने बताया कि इस साल छात्रों का ढाई क्विंटल हर्बल गुलाल बनाने का लक्ष्य है। हर साल इस पहल से छात्रों को आर्थिक लाभ मिलता है और वे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। फिलहाल बाजार में भी इस हर्बल गुलाल की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। लोग इसे खरीदकर होली खेलने के लिए प्राथमिकता दे रहे हैं। यह गुलाल पूरी तरह प्राकृतिक होने के कारण त्वचा के लिए सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है।छात्रों ने इसे एक बड़ा अवसर मानते हुए आगे भी इस तरह के स्वरोजगार के प्रयास जारी रखने की बात कही है। यह पहल न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को भी साकार कर रही है।