विशालकाय भारत में विविध परंपराएं हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक यही विविधता पर्वो में भी नजर आती है । सुदूर दक्षिण भारत में स्थित केरल में धूमधाम से ओणम का पर्व मनाया जाता है। यह 10 दिवसीय पर्व है। इस वर्ष 6 से 15 सितंबर तक यह पर्व मनाया गया, जिसका समापन तिरुवोनम के साथ रविवार को हुआ। इसके पीछे पौराणिक कथा है। केरल क्षेत्र में राज करने वाले दैत्य राज महाबली अपनी दानशीलता और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे, जिसकी परीक्षा के लिए भगवान विष्णु ने बामन अवतार लिया और उनसे तीन पग जमीन की मांग की। ब्राह्मण को राजा बलि ने तीन पग जमीन दी तो भगवान विष्णु ने दो कदम में ही ब्रह्मांड और धरती लोक नाप दिया। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहा तो राजा बलि ने अपना सर उनके समक्ष झुका दिया, जिसके बाद भगवान बामन अवतार ने उन्हें पाताल लोक की ओर धकेल दिया लेकिन उनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि वे हर वर्ष ओणम पर अपनी प्रजा से मिलने आएंगे। यही कारण है कि केरल में राजा बलि के आगमन के स्वागत में हर वर्ष यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। यह नई फसल के स्वागत का भी पर्व है, साथ ही केरल में चिंगम महीने से नए वर्ष की शुरुआत भी होती है। 10 दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व में पूजा पाठ के साथ फूलों से खास सजावट की जाती है। वहीं केले के पत्ते पर पारंपरिक मलयाली व्यंजन परोसे जाते हैं। इस अवसर पर विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम और नौका दौड़ का भी आयोजन होता है । केरल से दूर बिलासपुर में रहने वाले मलयाली समाज भी ओणम का पर्व धूमधाम से मनाता है । बिलासपुर के भारतीय नगर स्थित श्री अय्यप्पा मंदिर में ओणम के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना की गई तो वहीं दक्षिण भारतीय मलयाली परिवारों में इस दिन थिरुवोनम के अवसर पर घरों में फूलों से आकर्षक सजावट की गई। वामन देव और महाबली की पूजा अर्चना की गई। साथ ही पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन मेहमानों को परोसे गए।

वैसे तो बिलासपुर में मलयाली समाज के अधिक लोग नहीं रहते लेकिन अलग-अलग क्षेत्र में रहने वाले मलयाली समाज के लोगों द्वारा भी यहां इस मलयाली परंपरा का निर्वहन करते हुए उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है। वैसे तो यह हिंदू पर्व है लेकिन इसकी विशेषता यह है कि केरल में रहने वाले मुस्लिम और ईसाई परिवार भी इस पर्व को मनाता है क्योंकि यह केरल की सांस्कृतिक विरासत है।

