
मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपो को दक्षिण भारत और खड़कपुर में सोलापुरी माता के रूप में पूजा जाता है। पारंपरिक रूप से प्रथम दिन काष्ठ पूजा के लिए शोभायात्रा निकाली जाती है।जिसके पश्चात सर पर कलश रखकर महिलाएं शोभा यात्रा में शामिल हुई। शोभा यात्रा की अगवाई पारंपरिक डफली वादकों ने किया।मान्यता है कि सोलापुरी माता सात बहने हैं , जिनके एकमात्र भाई पोतराजू घुमंतू प्रवृत्ति के हैं। वे ही माताओ के रक्षक भी है, इसलिए काष्ठ पूजा के साथ पूजा पंडाल के समक्ष पोत राजू की भी स्थापना की गई जो आगामी आयोजन तक सम्पूर्ण दिवस मां की प्रतिमा के सम्मुख मौजूद रहेंगे ।

पारंपरिक दक्षिण भारतीय श्रृंगार और वस्त्र धारण कर बड़ी संख्या में महिलाएं इस शोभा यात्रा में शामिल हुई। पूजा पंडाल में इन्हीं महिलाओं और बाल पुजारी द्वारा अनुष्ठान संपन्न कराए गए। राटा पूजा को काष्ठ पूजा भी कहा जाता है।मान्यता है कि इन दिनों पड़ने वाली भीषण गर्मी से मुक्ति और ग्रीष्मकालीन बीमारियों से बचाव के लिए माँ सोलापुरी की आराधना की जाती है। उनके आशीर्वाद से तेज गर्मी के प्रकोप और ग्रीष्मकालीन बीमारियों से मुक्ति मिलती है , तो वही उनकी पूजा अर्चना करने से क्षेत्र में उनकी कृपा से शीतलता आती है।