छग. में आज भी भांजे के पैर छूकर प्रणाम करने की परंपरा।
आज का छत्तीसगढ़ जिसे हम रामायण काल में पढ़ते हैं तो इसका संबंध माता कौशल्या से जुड़ता है। छत्तीसगढ़ जो रामायण काल में कोसल तथा कुछ क्षेत्र दंडकारण्य के नाम से उस वक्त जाना जाता था।
छत्तीसगढ़ का ‘कोसल’ नामकरण “कोसल खंड” नामक अप्रकाशित खंड से ज्ञात होता है. इसके अनुसार विंध्य पर्वत के दक्षिण भाग में एक नामपत्तन क्षेत्र के पास महाकोसल राजा हुआ करते थे, उनके ही नाम पर इस क्षेत्र का नाम कोसल कहलाया। कोसल नरेश के एक पुत्र थे जिनका नाम भानुमंत था. भानुमंत की बेटी भानुमती (पिता के नाम के तर्ज पर) थी. जिन्हे बाद(शादी के बाद) में कौशल्या नाम से संबोधित किया जाने लगा। इनका विवाह उत्तर कोसल के राजा दशरथ से हुआ था। शादी के बाद इन्हे कोसल क्षेत्र से होने के कारण ‘कौशल्या’ नाम से जाना जाने लगा।
मां भानुमती कैसी कौशल्या कहलाई:
हमारे छत्तीसगढ़ में आज भी महिलाओं को सुसराल में उनके मूल नाम से नहीं पुकारा जाता, उन्हें मायके के क्षेत्र से जोड़कर एक नाम बनाकर पुकारा जाता है जैसे- ‘कोसल से आयी बहु को कौशल्या’. और इस तरह से माता भानुमती का दूसरा नाम कौशल्या हो गई।कौशल्या माता के छत्तीसगढ़ से होने की वजह से अर्थात मायका होने के कारण भगवान श्रीराम हमारे छत्तीसगढ़ के रिश्ते में भांजे होते हैं। यही कारण है कि हमारे छत्तीसगढ़ में मामा द्वारा आज भी भांजे के पैर छूने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ में भांजे को राम का दर्जा/सम्मान दिया जाता है। आज भी यहां मामा द्वारा भांजे के ऊपर हाथ नहीं उठाया जाता और यह व्यवहार यहां के मामा-भांजे के रिश्ते में हम आज भी देख सकते हैं। यही कारण है कि हमारे यहां किसी परिचित या खास व्यक्ति, मित्र आदि को प्यार से, सम्मान से भांजे कहकर संबोधित किया करते हैं। मास्टर के पढ़ाई के दौरान मुझे भी कई मित्र द्वारा भांजा कहकर पुकारते थे।

रामायण के अरण्य काण्ड और कई घटनाएं छत्तीसगढ़ से जुड़े हैं जैसे:
माता शबरी के द्वारा भगवान राम और लक्ष्मण को जूठे बेर खिलाने की घटना चांपा स्थित शिवरीनारायण में घटी थी। यहां के एक पीपल पेड़ में पत्ते आज भी दोने (पट्टे की कटोरी) के आकार में होती है।
• खरौद में राम जी द्वारा खरदूषण का वध करना और लक्ष्मण द्वारा शिवलिंग स्थापित करना। यहां अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए लाख चावल के दाने दान करना और शिव लिंग में लाख छिद्र होने का उल्लेख है।
• सरगुजा में रामगढ़ की पहाड़ी है. यहां राम, लक्ष्मण और सीता माता के वनवास के दौरान निवास का प्रमाण मिलता है। यहां सीताबेगरा, लक्ष्मणबेगरा ये इनके निवास स्थान हुआ था। यहां लक्ष्मण के पैरों के निशान, सीताकुंड आदि भी है। (कालिदास जी ने यहीं मेघदूत की रचना की थी)
• तुरतुरिया(बलोदाबाजार) में मान्यता अनुसार यहां वाल्मीकि आश्रम था। माता सीता को अयोध्या से निकाले जाने के बाद वो अपनी जीवनयापन यही रह कर व्यतीत की थी। लव-कुश का जन्म भी इसी जगह पर हुआ था।राम जी का छत्तीसगढ़ से संबंध ननिहाल होने से शुरू होता है और वनवास के दौरान अपना अधिक समय दंडकारण्य के जंगलों में रहकर गुजारने तथा अपने बेटों को राज्य बाटने के बाद खत्म होता है। कुश को दक्षिण कोसल क्षेत्र मिला था जो वर्तमान का छत्तीसगढ़ है।
राज्य सरकार द्वारा “छत्तीसगढ़ राम वन गमन पथ” योजना के तहत श्री राम द्वारा यहां भ्रमण 51 स्थानों को चयनित किया गया है, यहां टूरिज्म के द्वारा लोगों को यहां के इतिहास और संस्कृति का बोध कराया जाएगा। इस योजना में कुल 2260 किलोमीटर का सफर है जिसे पूरा करना है।

इसे कई चरणों में पूरा किया जाएगा, इसके पहले चरण में 9 जगह को चयनित किया गया है जो हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर चांपा), तुरतुरिया(बलौदाबाजार), चंदखुरी(रायपुर), राजिम(गरियाबंद), सिहावा स्थित सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर), रामाराम(सुकमा) है। इस तरह से लोगों को राम जी और वनवास के दौरान घटित घटना की जानकारी मिलेगी, जिससे लोग छत्तीसगढ़ को और बेहतर तरीके से जान पाएंगे।
अन्य तथ्य :
छत्तीसगढ़ में पिछले एक महीने में दो बड़ी नक्सली घटनाएं घटी है। यहां के बारे में दूसरे राज्य में रहने वाले लोगों का दृष्टिकोण एक नक्सली प्रभावित क्षेत्र के रूप में जानते हैं। इस वजह से यहां के प्राकृतिक, सांस्कृतिक, इतिहासिक आदि चीज़ों से कहीं न कहीं लोग जानने या परिचित नहीं हो पाते हैं। जिस वजह से दूसरे राज्य के लोग यहां चारो ओर से घिरे उन पहाड़ों को नहीं जानते जिसके लिए छत्तीसगढ़ को “धान का कटोरा” कहा जाता है।
यह चारो तरफ से पहाड़ों से ऐसी घिरी हुई है जैसे एक कटोरे का आकार होता है. चारो ओर से घिरा हुआ और उसका मध्य भाग समतल. ठीक इसी तरह से मध्य छत्तीसगढ़ समतल भूमि है जहां से सोने(अन्न) की फसल की जाती है। उत्तर में स्थित कैमूर, देवगढ़ की पहाड़ी, रामगढ़ की पहाड़ी, पाट प्रदेश आदि हैं। कालिदास जी जब छत्तीसगढ़ आ रहे थे और जब वो रामगढ़ की पहाड़ी पर पहुंचे तो उन्होंने वहां के ऊंचे पहाड़ों को, चोटियों को वहां की प्राकृतिक सुंदरता को देखे तो वो बहुत ही आकर्षित हुए और उन्होंने अपनी मेघदूत की रचना की। जिसमें श्री राम, सीता जी के प्रेम को प्रकृति की सुंदरता से जोड़कर अपनी रचना में बताया। उन्होंने घने(बादल) की तुलना एक दूत के रूप में किया।

यहां के पश्चिम में स्थित मैकल पर्वत और उसके छत्र में स्थित कवर्धा जिला पड़ता है जहां भोरमदेव मंदिर है। जो यहां की प्राचीनतम सभ्यता को दर्शाती है। वही छत्तीसगढ़ का स्वर्ग कहे जाने वाला बस्तर जहां प्रकृति आपको अपने अंदर समा लेती है वो कितना खूबसूरत है ये आपको मेरी ये लेखन बयां नहीं कर सकती जो केशकाल से गुजरते हुए महसूस होगी, उस पांचवे मोड़ में स्थित तेलीन माता का मंदिर और पहाड़ों का शिखर जो हमें एक छोर से दिखता है। वो बैलाडीला की पहाड़ी जिसके शिखर पर जाने से मानो ऐसा लगता है जैसे हम आसमान को छू लिए हैं। वो घने जंगल और नीले आसमान के बीच में एक पत्थर पर बैठे हाथ में चाय लिए जब आप छत्तीसगढ़ को जानेंगे तो आपको प्रेम हो जाएगा। छत्तीसगढ़ में जानने योग्य बहुत सारी संस्कृति, इतिहासिक आदि कलाएं हैं। इसमें मैने आपको खूबसूरती का एक छोटा सा बखान पेश किया है। यहां प्रकृति से संबंधित हर वो चीज है जो आप ढूंढते हैं ऊंचे पहाड़ों में, गांव – गलियारों में, घने वनों में और वो आदिवासी जीवन का मूल अर्थ जो हमारे छत्तीसगढ़ के मैदानी और बस्तर के सुदूर भागों में बसे गांवों में है।