” बना कर दिये मिट्टी के, जरा सी आस पाली है, मेरी मेहनत खरीदो यारों, मेरे घर भी दीवाली है।”
लोगों में आई जागरूकता ने उन्हें प्रकृति की ओर लौटने का इशारा दिया है। मिट्टी की सामग्री की मांग आज भी बदस्तुर बनी हुई है पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मिट्टी के बर्तन दिए मटके कुल्हड़ की मांग आज भी है ।वही सरकार द्वारा अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के चलते इसकी लागत बढ़ती जा रही है ,जिससे अब यह घाटे का सौदा बनता जा रहा है,

दीपावली को लेकर कुम्हार भी तैयारी में जुट गए हैं मिट्टी के दिए और ग्वालिन बनाने में कुम्हार परिवार जुटा हुआ है, पहले की तुलना में अब इसकी लागत और कीमत दोनों बढ़ गई है। वही मेहनत अधिक लगने के कारण अब लोग इस व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं । कुम्भकार का कहना है कि यदि सरकार से सहयोग मिले, मिट्टी और भूसी के रेट पर अनुदान मिले तो हमें फायदा होगा, नहीं तो अब तो यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है, कृष्ण कुमार प्रजापति का परिवार पीढियों से कुम्हार का काम कर रहा हैं। उनका कहना है पहले ₹20 प्रति सैकड़ा की दर से बिकने वाले दिए अब ₹120 तक होलसेल में पहुंच गए हैं, कृष्ण कुमार की सरकार से कुछ मांग भी है जी न्यूज़ से चर्चा में अपनी बातें और मांगे रखी है ।