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Saturday, June 21, 2025
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आस्था और विश्वास श्री हनुमान जी की कृपा से बदली जिंदगी, रिटायर्ड जीएम ने बनाई भक्ति को पहचान

बिलासपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर स्थित सिद्ध श्री दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर आज सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि हजारों लोगों की आस्था का केंद्र बन चुका है। मध्यप्रदेश राज्य के समय से स्थापित यह स्थान अब एक भव्य मंदिर का रूप ले चुका है। इस मंदिर से जुड़ी है एक ऐसी सच्ची कहानी, जिसने भक्ति की ताकत को जीने का ज़रिया बना दिया। बात है वर्ष 2005 की, जब एनटीपीसी सीपत के रिटायर्ड जीएम अनिल कुमार मेजरवा जिंदगी के कठिन मोड़ पर खड़े थे। रायगढ़ निवासी अनिल कुमार किसी काम से बिलासपुर आए और रेलवे स्टेशन पर स्थित हनुमान जी की मूर्ति के आगे सिर झुकाया। उनकी आंखों में आंसू थे, मन में सवाल और जुबां पर केवल एक प्रार्थना।उस वक्त यह स्थान एक पुरानी मूर्ति भर था, जो मध्यप्रदेश शासन के समय से स्थापित थी, लेकिन उस क्षण से उनके जीवन की दिशा बदल गई। अनिल कुमार जैसे ही रायगढ़ लौटे, उनके जीवन में सकारात्मक बदलावों की शुरुआत हो गई। वे मानते हैं कि यह सब श्री हनुमान जी की कृपा का ही परिणाम था।भक्ति की शक्ति ऐसी थी कि अनिल कुमार को रायगढ़ से बिलासपुर बुला लिया गया। उन्होंने शहर में ही निवास बना लिया और अब हर दिन मंदिर में सेवा करते हैं। आज यह मंदिर उनकी आस्था और सेवा का केंद्र बन चुका है।मंदिर को भव्य रूप देने की शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी और 2010 तक इसका निर्माण पूर्ण हो गया। लेकिन इसकी जड़ें 25 साल से भी अधिक पुरानी हैं। यह वही स्थान है जहां पहले केवल मूर्ति थी, जो अब श्रद्धा के विशाल केंद्र में बदल चुका है।अनिल कुमार के मुताबिक हनुमान जी की सेवा से उन्हें और उनके पूरे परिवार को जीवन की हर खुशी प्राप्त हुई है। यही वजह है कि वे हर साल हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर भव्य आयोजन कराते हैं, जिसमें हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।जहां पहले एक छोटे से दूंगे में प्रसाद बनता था, वहीं आज तीन कंटेनर भी कम पड़ जाते हैं। मंदिर में न सिर्फ आमजन बल्कि रेलवे के अधिकारी, कर्मचारी और यात्री भी बड़े श्रद्धा से भोग ग्रहण करते हैं।

सिद्ध श्री दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर ना केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी प्रेरणा बन चुका है, जिन्होंने कठिन हालात में यहां मत्था टेककर समाधान पाया है। अनिल कुमार मेजरवा जैसे श्रद्धालु इसके जीते जागते उदाहरण हैं। हर साल होने वाला विशाल आयोजन अब एक परंपरा बन चुका है, जो न सिर्फ भक्ति बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है।

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