
कानन पेंडारी जू की सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर बारिश के पहले ही लड़खड़ाती नजर आ रही है। हर साल की तरह इस बार भी जू की बाउंड्रीवाल जगह-जगह से झुकने लगी है। हालात यह हैं कि ईंट की दीवारों को गिरने से बचाने के लिए लकड़ी और पत्थरों का सहारा लिया जा रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि 114 एकड़ में फैले और 650 से अधिक वन्य प्राणियों वाले इस जू की सुरक्षा आखिर कब पुख्ता होगी?कई हिस्सों में बाउंड्रीवाल की हालत इतनी खराब हो गई है कि गेट नंबर एक के पास की सीमेंट की दीवार एक ओर झुक गई है और इसके नीचे लकड़ी व पत्थर के टेको का सहारा दिया गया है। हाथियों के बाड़े के पीछे और मुख्य गेट के पास की दीवारें पहले भी कई बार गिर चुकी हैं। नए निर्माण के बजाय वहां ग्रीन नेट लगाकर घेराबंदी कर दी जाती है, जो स्थायी समाधान नहीं है।

जू प्रबंधन ने बच्चों के लिए गार्डन, पिकनिक स्पॉट और तखतपुर रोड की ओर फेंसिंग व पोल लगाकर घेराबंदी जैसी सुविधाएं जरूर तैयार की हैं, लेकिन कई जगह अभी भी अधूरी ईंट की दीवारें ही एकमात्र सुरक्षा साधन बनी हुई हैं। ये दीवारें हर साल बारिश से पहले ही खतरनाक स्थिति में पहुंच जाती हैं। इससे न केवल वन्य प्राणियों की सुरक्षा पर खतरा मंडराने लगा है, बल्कि आसपास के लोगों की चिंता भी बढ़ गई है।डीएफओ गणेश यू आर ने बताया कि जू की कई दीवारों की मरम्मत बेहद जरूरी है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बजट की है। उन्होंने कहा कि जब तक मरम्मत के लिए बजट स्वीकृत नहीं होता, तब तक दीवारों को लकड़ी और पत्थर के सहारे गिरने से बचाया जा रहा है। वन विभाग ने इस मामले में स्थायी समाधान की जरूरत को स्वीकार किया है, लेकिन फिलहाल समाधान का रास्ता बजट पर ही टिका है।