10 साल पहले बिलासपुर के करीब घुटकू में पावर एंड कोल फिल वेरीफिकेशन की शुरुआत की गई। उस दौरान गांव में खेती किसानी करने वाले किसानों को सपना दिखाया गया कि वे अपनी जमीन बेच दे तो उनके परिवार के किसी एक सदस्य को कंपनी में पक्की नौकरी मिलेगी। एक मुश्त रकम और नौकरी की लालच में सैकड़ो लोगों ने अपनी जमीन बेच दी। फैक्ट्री प्रबंधन ने जमीन खरीदने से पहले लोगों को नौकरी देने का वादा किया था लेकिन उनमें से कुछ लोगों को दिहाड़ी मजदूर के तौर पर रखा गया और उन्हें 3 महीने में निकल भी दिया गया। अब यह लोग ना घर के रहे ना घाट के। खेती करने को जमीन नहीं रही और नौकरी से भी अजीबोगरीब बहाने कर उन्हें निकाल दिया गया। कभी कहा गया कि वे तो ठेकेदार के कर्मचारी थे तो कभी उन पर शराब पीने का इल्जाम लगाया गया। प्रबंधन की वादा खिलाफी और तानाशाही से हताश ग्रामीणों ने पिछले दिनों ग्राम निरतु स्थित पावर एंड कोल फिल वेनिफिकेशन के खिलाफ धरना दिया। यहां प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई तो फिर उन्हें एक महीने का वक्त देकर कार्यवाही का झुनझुना थमा दिया गया। कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि निरतु सरपंच केदार पटेल फैक्ट्री प्रबंधन से मिले हुए हैं, जबकि केदार पटेल इस बात से खफा है कि ग्रामीणों ने अपने ही विनाश के लिए फैक्ट्री प्रबंधन को जमीन क्यों बेची। कंपनी के मालिक और प्रबंधन का खौफ ऐसा है कि ग्रामीण पीड़ित होने के बावजूद उनके खिलाफ बोलने से भी डरते हैं ।

ग्रामीणों ने बताया की फैक्ट्री प्रबंधन ने करीब 30 टेक्नीशियन और 150 से अधिक मजदूर के रूप में ग्रामीणों को काम पर रखा था लेकिन सोची समझी रणनीति के तहत धीरे-धीरे अधिकांश ग्रामीणो को काम से निकाल दिया गया। किसी भी ग्रामीण को 2 साल से अधिक की नौकरी नहीं दी गई ताकि उन्हें परमानेंट ना करना पड़े। ग्रामीणों ने बताया की फैक्ट्री मालिक ने फैक्ट्री स्थापना के पहले सीएसआर मद से गांव के विकास का वायदा किया था। कहा यह भी जा रहा है कि फैक्ट्री मालिक ने निरतु और घुटकू को गोद भी लिया था। इसके बावजूद सीएसआर मद से एक काम नहीं किया गया, उल्टे निरतु- घुटकू मुख्य मार्ग से रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए एकमात्र आम रास्ता पर फैक्ट्री प्रबंधन ने कब्जा कर लिया और कथित तौर पर सीएसआर मद से 50 लाख रुपए खर्च कर डेढ़ किलोमीटर सड़क का डामरीकरण कर दिया। साथ ही सड़क पर बैरिकेड लगाकर चौकीदार बैठा दिया गया, ताकि सड़क का इस्तेमाल केवल फैक्ट्री में आने जाने वाले भारी वाहनों के लिए ही किया जा सके। ग्रामीणों की आवाजाही रोक देने से उनकी परेशानी बढ़ गई । इसे लेकर भीतरी भीतर रोष है।गांव में लोगों ने कहा कि वादा खिलाफी करते हुए फिल ग्रुप द्वारा सीएसआर मद से एक काम नहीं कराया गया। अब फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं और कोयले के डस्ट से लोगों का जीना मुश्किल हो चुका है। लोग घर में कपड़े तक नहीं सुखा पा रहे हैं। फसल पर डस्ट की परत होने से फसल बर्बाद हो रही है। आम सड़क पर फैक्ट्री ने कब्जा कर लिया है। सरकारी जमीन पर तालाब बनाया गया है, उसमें फैक्ट्री के लिए पानी भरता है। इस फैक्ट्री की वजह से किसानों की फसल बर्बाद हो रही है। सब्जी बाड़ी उजड़ गई। लोगों को रोजगार के नाम पर धोखा मिला। खेतों में फैक्ट्री का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। कुल मिलाकर विकास का सपना दिखाकर यहां विनाश की इबारत लिख दी गई है।

पिछले दिनों स्थानिय बेरोजगारों ने धरना देकर 50 फ़ीसदी पदों पर नौकरी दिए जाने, जिन परिवारों की जमीन अधिग्रहित की गई है उनके एक सदस्य को नौकरी देने, सभी कर्मचारियों के लिए बीमा, चिकित्सा, स्वास्थ्य की व्यवस्था करने , कलेक्टर दर पर वेतन देने, कंपनी में ठेका प्रथा बंद करने, कंपनी के आसपास प्रभावित हो रहे किसानों को उनकी फसल के नुकसान का मुआवजा देने, हर 6 महीने में स्वास्थ्य शिविर लगने और सालाना टर्नओवर का दो प्रतिशत सीएसआर राशि प्रभावित ग्राम पंचायत को दिए जाने की मांग की है। इधर कंपनी का कहना है कि उन्हें इतना लाभ नहीं हो रहा है कि वे सीएसआर पर खर्च कर सके। इस मामले में कैमरा ऑफ करते ही ग्रामीण विनाश की कहानी सुनाने लगते हैं लेकिन प्रबंधन का डर ऐसा कि कैमरे पर कुछ कहने से सहम जाते हैं। फिर भी कई लोगों ने यहां की सच्चाई उजागर की है। पता नहीं इसके बाद भी जिला प्रशासन, पर्यावरण विभाग और अन्य एजेंसी इस ओर क्यों ध्यान नहीं दे रहे हैं ।