
इस घटना के विरोध में न केवल छात्रों ने स्थानीय कोनी थाने में शिकायत दर्ज कराई, बल्कि इसे लेकर बिलासपुर शहर में सामाजिक और धार्मिक संगठनों में व्यापक आक्रोश फैल गया है। हिंदूवादी संगठनों ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया है। प्रदर्शनकारियों ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल को हटाने और NSS समन्वयक को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की है। संगठनों का कहना है कि यह केवल एक धार्मिक गतिविधि को थोपा जाना नहीं है, बल्कि यह विश्वविद्यालय के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर सीधा आघात है। वे इसे धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन और जबरदस्ती धर्म विशेष के अनुष्ठान को थोपने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं।

इस मुद्दे के तूल पकड़ने के बाद कुलपति प्रो. चक्रवाल ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया था और आश्वासन दिया था कि 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, अब तक कोई ठोस कदम न उठाए जाने से छात्रों और संगठनों में निराशा व्याप्त है। इसको लेकर विश्वविद्यालय गेट के सामने धरना-प्रदर्शन के साथ एक जनसभा का आयोजन किया गया, जहां विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते हुए जवाबदेही तय करने की मांग की।


वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि फैक्ट फाइंडिंग कमेटी द्वारा निष्पक्ष जांच की जा रही है और बहुत जल्द रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी, जिसके आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी। प्रबंधन का यह भी कहना है कि वह किसी भी प्रकार की जबरदस्ती, पक्षपात या धार्मिक भेदभाव के पक्ष में नहीं है और विश्वविद्यालय की धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।बाइट-3 डॉ एमएन त्रिपाठी, प्रभारी, मीडिया सेल, जीजीयू विओ-4 इस पूरे मामले ने गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय को न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है, जहां शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक गतिविधियों की भूमिका, सीमाएं और उनकी वैधानिकता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। अब देखना यह है कि जांच रिपोर्ट के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन क्या कदम उठाता है और क्या वह छात्रों और सामाजिक संगठनों की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाता है या नही।