
बिलासपुर छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है और बिलासपुर जिले में धान की खेती किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है। हर साल खरीफ सीजन में किसान पूरे उत्साह से धान की बुवाई करते हैं,लेकिन इस बार खाद की भारी किल्लत उनके सामने गंभीर संकट बनकर खड़ी हो गई है। सबसे ज्यादा उपयोग होने वाला उर्वरक डाय अमोनियम फॉस्फेट डीएपी इस बार किसानों को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रहा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण खाद के आयात पर असर पड़ा है,जिससे डीएपी की सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हुई है।बिलासपुर जिले में खरीफ सीजन के लिए लगभग 10 हजार मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत होती है, लेकिन अब तक केवल 2 हजार मीट्रिक टन ही प्राप्त हो पाया है संभावना जताई जा रही है कि आगे चलकर 2 हजार मीट्रिक टन और मिल सकता है,लेकिन फिर भी कुल आपूर्ति जरूरत का सिर्फ 40 फीसदी ही हो सकेगी। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए कृषि विभाग ने किसानों को वैकल्पिक उर्वरकों के इस्तेमाल की सलाह दी है।विभाग द्वारा एनपीके, यूरिया और सिंगल सुपर फॉस्फेट जैसे उर्वरकों को अपनाने की अपील की जा रही है ताकि फसलों को पोषक तत्व मिलते रहें और उत्पादन पर असर न पड़े। संबंधित अधिकारियों का कहना है कि यदि किसान समय रहते इन विकल्पों को अपनाते हैं तो नुकसान को काफी हद तक टाला जा सकता है। हालांकि किसानों के बीच डीएपी की कमी को लेकर गहरी चिंता है। उनका कहना है कि फसल की शुरुआत में डीएपी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है और इसकी अनुपलब्धता सीधे तौर पर पैदावार को प्रभावित कर सकती है। कई किसान सहकारी समितियों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन निराशा ही हाथ लग रही है।जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने स्थिति को गंभीरता से लेते हुए विकल्पों पर काम शुरू कर दिया है। स्टॉक की निगरानी, विकल्पों की उपलब्धता और किसानों को जागरूक करने के लिए बैठकें आयोजित की जा रही हैं। फिर भी, डीएपी की कमी का फसल उत्पादन पर कितना असर पड़ेगा, यह तो आगामी समय में ही सामने आएगा।