
जमीन की रजिस्ट्री और नामांतरण की प्रक्रिया को आसान बनाने शासन ने 20 मई से नई सुविधा लागू की है। इसमें रजिस्ट्री के साथ ही नाम अपने आप रिकॉर्ड में चढ़ जाना था। लेकिन अब यही सुविधा आम लोगों के लिए मुसीबत बन गई है।नई प्रक्रिया के तहत रजिस्ट्री के बाद नामांतरण ऑनलाइन जुड़ना था, लेकिन सॉफ्टवेयर की दिक्कत से यह लिंकिंग नहीं हो पा रही। खरीदारों को तहसील और पटवारी के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। अधिकारियों की लापरवाही से लोगों को बार-बार फॉर्म जमा करने पड़ रहे हैं।दस्तावेज लेखक और एजेंटों का कहना है कि नियम तो बेहतर है, लेकिन राजस्व और उपपंजीयक विभाग की लिंकिंग अब तक नहीं हो पाई।

इसका नतीजा ये है कि नामांतरण प्रक्रिया पटरी से उतर चुकी है और छोटे कस्बों में हालात और भी खराब हैं।मस्तूरी, तखतपुर और सकरी जैसे इलाकों में रोजाना सैकड़ों लोग परेशान हो रहे हैं। लोगों का आरोप है कि अब नाम रजिस्टर में चढ़वाने के लिए घूस मांगी जा रही है। अफसरशाही और तकनीकी खामियों के बीच आम जनता फंसी हुई है।जब इस पूरे मामले पर जिला रजिस्टार आर. के. स्वर्णकार से बात करने की कोशिश की गई तो वे मीडिया से बचते नजर आए। उनका चुप रहना सवाल खड़े करता है कि आखिर जिम्मेदार अफसर कार्रवाई से क्यों बच रहे हैं। शासन की मंशा व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की थी, लेकिन ज़मीनी हालात इसके उलट हैं। जरूरत है कि शासन इस मामले में सख्ती दिखाए और दोषियों पर कार्रवाई करे ताकि जनता को राहत मिल सके।