सौभाग्य और समृद्धि के लिए किए जाने वाले महाराष्ट्रीयन परिवार द्वारा महालक्ष्मी पूजन के तीसरे दिन हल्दी कुमकुम रस्म के साथ पूजन का समापन हो गया ।भाद्रपद माह में महालक्ष्मी पूजा का बड़ा महत्व है। मंगलवार से शुरू महालक्ष्मी पूजन का समापन नवमी को हुआ। इस दिन हल्दी कुमकुम के साथ महालक्ष्मी की विदाई भव्य रूप से की गई ।इन तीन दिवसों के लिए देवी जी का आगमन हुआ था उनके स्वागत में समाज की महिलाओं द्वारा द्वार पर शुभ पग बनाए गए, सुहागिन महिलाओ ने अपने हाथों के पंजों से हल्दी के निशान और उस पर कुमकुम का लेप लगाया। सरकंडा के विजयपुरम के राम ओतलवार परिवार में तीन दिनों से महालक्ष्मी की पूजा अर्चन की जा रही थी। मान्यता अनुसार जेष्ठ महालक्ष्मी है और कनिष्ठ उनकी छोटी बहन लक्ष्मी का रूप है। लक्ष्मी अपने बच्चों के साथ मायके बडी बहन के घर आती है इसे तीन दिनों तक पर्व के रूप में महाराष्ट्रीयन परिवार धूमधाम से मनाता है ।

सप्तमी को पहले दिन माता का श्रृंगार किया जाता है और उनकी स्थापना हुई, दूसरे दिन महाभोग प्रसाद महानिवेद्य चढ़ाया जाता है ।वहीं तीसरे दिन हल्दी कुमकुम रस्म के साथ महादेवी की विदाई की गई। महाराष्ट्रीयन परिवार इसे सुख समृद्धि का प्रतीक मानते हुए पूजा करते हैं ,उनका कहना है यह एक ऐसी पूजा है जिससे मन को एकदम शांति मिलती है, इस पूजा का विधि विधान कठिन होने के बाद भी उसका एहसास नहीं होता है, सभी काम और तैयारी अपने आप हो जाती है ,परिवार के सदस्यों का कहना है कि पूजा के समय परिवार के सदस्य घर आते हैं इससे घर में एकता का भाव पैदा होता है ।आपस में प्रेम बढ़ता है, ।उनका कहना है कि इस पूजा से यह शिक्षा मिलती है कि आजकल परिवार समाज में जो बिखराव की स्थिति बनी है उसे संगठित करने में सहायक साबित होता है। महाराष्ट्रीयन परिवार के अनुसार महालक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। संतान की प्राप्ति होती है, सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है मन में एकता का भाव पैदा होता है।
