
सनातन का अर्थ है,जो शाश्वत हो, चिरस्थाई हो,दृढ़ हो,जो आदि अंत रहित हो,जो निरंतर ज्ञान का विस्तार करे। यह दुभाग्यपूर्ण है कि लोग सनातन का नितांत संकुचित अर्थ लगाते है। सनातन संस्कृति भारत की पहचान है। सनातन हमारा प्राण हैं, जिस पर हमें गर्व है। किंत् वर्तमान परिवेश में सनातन मूल्यों का क्षरण, अंधानुकरण और पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव तथा दुष्चक्र हमारी प्राचीन विरासत और धरोहर को खंडित कर रहा है।” ये ज्वलंत विचार स्वामी नंदाचार्य जी के हैं। बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने आगे कहा कि आज सनातनी लोग नियमित रूप से न मंदिर जा रहे हैं और न ही व्रत उपवास,न यज्ञ,अनुष्ठान आदि कर रहे हैं। न कथा श्रवण ही कर रहे हैं। पवित्र एवं परिपुष्ट वातावरण निर्मिंत होता है, जिसके अनेकानेक लाभ हैं। भागवतकथा, रामकथा, शिवकथा, गोकथा आदि से से विशिष्ट प्रेरणा और सीख मिलती है,प्रणोदन मिलता है। संस्कारक्षम वातावरण और परिवेश निमित होता है। जिसकी विशद-व्यापक सुखद प्रभान्विति होती है। योग, संगीत और कला भी भारत की अमूल्य धरोहर है, लेकिन अज्ञानियों या अल्पज्ञान द्वारा सनातन उपादानों की भ्रामक व्याख्या की जा रही है।