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Thursday, June 26, 2025
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14 दिन बाद खुले श्री मंदिर के पट, नेत्र उत्सव में झलका भक्तिभावजगन्नाथजी ने पाया नवजीवन, नव कलेवर और नव दृष्टि से भक्तों को दिए दर्शन

रेलवे क्षेत्र स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में गुरुवार प्रातः नेत्र उत्सव की दिव्य धूम रही। 14 दिनों के उपरांत एक बार फिर से मंदिर के पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।इस मौके पर जहां भक्तों में उत्साह की लहर देखी गई, वहीं भगवान जगन्नाथ की दिव्य झांकी ने श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। इस नेत्र उत्सव के साथ ही रथ यात्रा की भव्य तैयारियों की भी झलक देखने को मिली।

भगवान जगन्नाथ की लीलाएं सदैव अद्भुत और अलौकिक रही हैं।देव स्नान पूर्णिमा के दिन 108 कलशों से पवित्र जलाभिषेक के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र को ज्वर हो गया था।परंपरा अनुसार, तबीयत खराब होने के कारण मंदिर के पट बंद कर दिए गए और 14 दिनों तक उन्हें विश्राम व औषधीय उपचार दिया गया।इन दिनों को अनासार कहा जाता है, जिसमें केवल सेवायतों को ही सेवा करने की अनुमति होती है।अब चौदह दिनों के विश्राम के पश्चात, जब भगवान ने स्वस्थ होकर फिर से भक्तों को दर्शन दिए, उस दिन को नेत्र उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार,आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को यह पर्व आता है,लेकिन इस बार ज्येष्ठ जून महीने में ही इस पर्व को मनाया जा रहा है।इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को नए नेत्र प्रदान किए जाते हैं।माना जाता है कि यह उनके नवजीवन का प्रतीक होता है, इसलिए इसे नवजोबन उत्सव भी कहा जाता है।तीनों प्रतिमाओं को इस अवसर पर नव कलेवर धारण कराया गया।उनके विग्रह पर चंदन का लेप किया गया और विशेष जड़ी बूटियों एवं औषधियों से उपचारात्मक सेवा की गई।

इस प्रक्रिया को घाना लागी और खाली प्रसाद लगी नीति कहा जाता है,जो विशेष और गोपनीय होती है।भक्तों के लिए यह दर्शन अत्यंत दुर्लभ, पवित्र और अलौकिक माने जाते हैं।नेत्र उत्सव के अवसर पर मंदिर के शिखर पर नया ध्वज फहराया गया, जो कि शुभ संकेत माना जाता है।यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और भगवान के स्वस्थ होकर दर्शन देने की घोषणा के रूप में इसे देखा जाता है। पूरे मंदिर परिसर को इस अवसर पर भव्य रूप से सजाया गया और चारों ओर भक्ति रस की गूंज सुनाई दी।अब सबकी निगाहें रथ यात्रा पर टिकी हैं।

हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथ पर सवार होकर देवी गुंडिचा के मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं,,लेकिन इस बार ज्येष्ठ महीने में मनाया जा रहा है। यह परंपरा राजा धृष्टद्युम्न और देवी गुंडिचा की अटूट भक्ति से जुड़ी मानी जाती है। माना जाता है कि भगवान ने स्वयं उन्हें वचन दिया था कि वे इस दिन उनके घर सेवा प्राप्त करने के लिए आएंगे।

इस वर्ष बिलासपुर में रथ यात्रा शुक्रवार 27 जून दोपहर 2 बजे शुरू होगी।केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू छेरा पहरा की परंपरा निभाएंगे। रथ यात्रा श्री मंदिर से निकलकर तितली चौक, स्टेशन रोड, बड़ा गिरजाघर, तारबाहर और गांधी चौक होते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी। वहां 5 जुलाई तक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा, और 6 जुलाई को बहुड़ा यात्रा यानी वापसी यात्रा निकाली जाएगी।

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