यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है।कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा-चौथ व्रत करने का विधान है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा-चौथ व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक निरंतर प्रति वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है।लिहाजा मंगलवार को करवा चौथ का त्योहार सभी सुहागिन महिलाओ ने हर्षोल्लास के साथ मनाया।इस अवसर पर महिलाए एक समूह में इकठ्ठा होकर पारंपरिक रिवाज के साथ पूजा विधि को संपन्न करती नजर आई।वही शाम को चांद के दर्शन के साथ पूजा का समापन हुआ।