पितरों को श्राद्ध और तर्पण अर्पित करने का पखवाड़ा पितृ पक्ष आरंभ हो गया है। इस अवसर पर 15 दिनों तक सात्विक जीवन व्यतीत कर पितरों को पिंडदान, तर्पण दिया जा रहा है ।सामान्य धारणा है कि पितृ पक्ष में मांगलिक और शुभ कार्य नहीं किए जाते, लेकिन इसे लेकर भी दो राय है। एक वर्ग का मानना है कि शुभ कार्य की वर्जना केवल इसलिए की गई है ताकि लोग तामसिक और भोग विलासिता से दूर होकर पूरी तन्मयता के साथ पितरों के प्रति समर्पित हो सके। वही दूसरा पक्ष मानता है कि पितर पक्ष भी सामान्य दिनों की तरह ही पवित्र है। इस पक्ष में कपिल षष्ठी ,चंद्र षष्ठी और अष्टमी को महालक्ष्मी पूजन जैसे पुनीत पर्व मनाये जाते हैं। सत्य तो यह है कि जीवन मरण के चक्र के बाद स्वर्ग नरक, पुनर्जन्म, आत्मा के चक्र की वास्तविक स्थिति को लेकर कोई भी पूरे दावे के साथ कुछ भी नहीं कह सकता। यह श्राद्ध पक्ष है। श्राद्ध यानी श्रद्धा।
दरअसल यह पूरा पखवाड़ा अपने पितरों और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अर्पित करने का समय है। माना जाता है कि पितृपक्ष में तर्पण और पिंड दान न करने से परिवार में अनेक प्रकार के कष्ट आते हैं और पितृ दोष लगता है। इस धारणा से अलग यह भी मानता है कि यह पूरा पखवाड़ा असल में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और आभार प्रकट करने का समय है । महालय के अवसर पर पितरों की तृप्ति के लिए विधि विधान के साथ तर्पण और अर्पण करना चाहिए। यदि कोई तर्पण और श्राद्ध न कर सके तो थोड़ा सा तिल पितरों का नाम लेकर पीपल वृक्ष के जड़ में भी डाल सकता है। माता-पिता के नाम से गायों को चारा दे सकता है। गया में श्राद्ध और ब्रह्म कपाली का पिंड देने के पश्चात भी पितरों को तर्पण देना शास्त्र सम्मत है। पितृ ऋण चुकाने के लिए इन नियमों का पालन आवश्यक है । हाई कोर्ट अधिवक्ता अशोक वर्मा ने इस विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी दी है।
