शायद ही ऐसा कोई मिले जो पानी पुरी या यानी गोलगप्पे का दीवाना ना हो। महिलाये तो इसके स्वाद पर मर मिटती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही छोटा सा गोलगप्पा सैकड़ो लोगों को रोजगार भी दे रहा है।

भारतीय व्यंजनों के लाजवाब स्वाद में पानी पुरी की अपनी अलग पहचान है। सस्ती, स्वादिष्ट पानी पुरी का दीवाना भला कौन नहीं होगा, यही कारण है कि सड़क पर ठेले खोमचे से लेकर 5 स्टार होटल के मेन्यू में और शादी ब्याह में भी अनिवार्य रूप से यह शामिल होता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत औषधि के रूप में की गई थी। राजा महाराजाओं के जमाने में भोजन से पहले भूख जगाने के लिए तमाम हर्बल के साथ जलजीरा जैसा पेय पदार्थ पेश किया जाता था, जिसे रोचक बनाने के लिए पानी पुरी का इजाद किया गया। यह पूरी तरह से भारतीय व्यंजन है और इसकी उत्पत्ति उत्तर भारत से हुई है। खासकर बिहार उत्तर प्रदेश और दिल्ली क्षेत्र को इसका जनक माना जाता है । भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। कहीं पानी बताशे, कहीं गोलगप्पे, कहीं गुपचुप तो कहीं इसे फुचका कहा जाता है । इसे पेश करने के तरीके भी अलग-अलग है। कहीं इसे चना आलू के साथ तो कहीं मटर आलू के साथ भरवान किया जाता है। दही वाले गुपचुप भी खूब प्रसिद्ध है। इसके स्वाद का असली आधार तो इसका पानी होता है। अक्सर अपने ठेले और बड़े होटल में इन गोलगप्पे का स्वाद लिया होगा, लेकिन शायद आपको पता नहीं होगा कि यह गोलगप्पे उन दुकानों में कम ही बनते हैं।

बिलासपुर के कई हिस्से हैं जहां पूरा परिवार दिन-रात कड़ी मेहनत कर इन छोटी-छोटी पुरियो को बनता है। बिलासपुर के दयालबंद क्षेत्र के अलावा चिंगराजपारा, चांटीडीह रपटा चौक के आसपास भी ऐसे दर्जनों परिवार है जो यही काम करते हैं । इसके लिए रात में ही आटा गूथ कर रख दिया जाता है। तो वही आधी रात को 2:00 बजे इनके पेड़े बनाए जाते हैं । सुबह परिवार के सदस्य अपनी-अपनी भूमिका में होते हैं। कोई इन्हें बेलता है तो कोई इन्हे सेंकता है । फिर 100 गोलगप्पे के पैकेट तैयार किए जाते हैं। आमतौर पर बड़े खरीददार थोक में ही इन्हें खरीद कर ले जाते हैं, जिन्हें 100 गोलगप्पे ₹50 में दिया जाता है, तो वहीं चिल्लहर में लेने वालों को इसके लिए 60 से ₹70 चुकाने होते है।

छोटे-छोटे स्वादिष्ट गोलगप्पे मुंह में जाकर स्वाद का विस्फोट करते हैं। यही गोलगप्पे इनके परिवार को रोजगार दिला रहे है। आमतौर पर पूरा परिवार ही इस काम में जुटा होता है, जिसकी शुरुआत तो रात से ही हो जाती है ।सुबह 8:00 से यह लोग गोलगप्पे डीप फ्राई करते हैं। दोपहर तक यह काम पूरा हो जाता है। फिर दोपहर से लेकर शाम तक इनकी बिक्री होती है। बिलासपुर में गोलगप्पे के ठेले लगाने वाले इनसे गोलगप्पे ले जाते हैं। इसके अलावा आजकल बाजार में पैकेट में बंद गोलगप्पे भी मिलते हैं, जो इनके ही जैसे कारीगर तैयार करते हैं।


स्वादिष्ट गोलगप्पे में भरावन भरकर चटपटा पानी या फिर दही सेव के साथ इसे बाजार में पेश किया जाता है। महिलाएं तो इनकी इस कदर दीवानी है कि उनका दिन इसके बगैर पूरा नहीं होता। वैसे बदनाम महिलाएं ही हैं इसके लाजवाब स्वाद के दीवाने तो पुरुष भी कम नहीं हैं। यही कारण है कि हर शाम चाट के ठेले पर गुपचुप खाने वालों की कतार लगी रहती है। कभी औषधि के रूप में आरंभ गोलगप्पे आज अपनी स्वाद की वजह से अलग पहचान बन चुके हैं। दिन का कोई भी वक्त हो लोग इसका स्वाद लेते- देखे जा सकते हैं, जिन्हें ऐसे कारीगर बड़ी मेहनत से तैयार करते हैं। इन गोलगप्पे को बनाना आसान नहीं होता। आप कभी घर में ट्राई करके देखिए। इनके जैसे गोलगप्पे नहीं बना पाएंगे। इनके कुछ सीक्रेट रेसिपी है जो यह आमतौर पर किसी से शेयर नहीं करते।