महाराष्ट्रीयन पंचांग के अनुसार भाद्रपद में ज्येष्ठ गौरी पूजा का विशेष महत्व होने से सष्ठी से अष्टमी, नवमी तक विधि-विधान से महालक्ष्मी की पूजा की जा रही हैं । पूजा के पहले दिन घरों में महालक्ष्मी अपने दो रूप जेष्ठा और कनिष्ठा के रूप में विराजमान हुई। उनके एक पुत्र और एक पुत्री की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई । पहले दिन मां के स्वागत के लिए घर के प्रवेश द्वार से पूजा कक्ष तक रंगोली से देवी के पद चिन्ह बनाए गए। जलाशयों से लाए गए कंकड़ों को भी देवी स्वरूप मानकर ‘खड़े ची महालक्ष्मी’ ऐसा कह स्थापित किया गया, दूसरे दिन बुधवार को महालक्ष्मी की पूजा अर्चना कर भोग प्रसाद लगाया गया और सभी कमरो में पद चिन्ह बनाकर पूजा किया गया ।महिलाओं ने घर के द्वार पर लगाए तोरण, फूलों से सजाया गया, शुभ पग चिन्ह बनाए विधिवत स्थापना के बाद दूसरे दिन पूजा के बाद भोग महाप्रसाद अर्पित किया गया। गौरी महालक्ष्मी को 16 प्रकार की सब्जियों, 16 प्रकार के मिठान का भोग लगाया गया , प्रसाद में ज्वार की बनी हुई ‘आंबील’ नामक परार्थ अनिवार्य है। इसी दिन शाम को सुहागिन 16 श्रृंगार के साथ फूल, मिठाई करती है।महालक्ष्मी पूजन में महाराष्ट्रीयन परिवार द्वारा दोनों देवियो ज्येष्ठा और कनिष्ठा को 16 चक्र धागे से सुतया जाता है। फिर देवियों और बच्चों का 16 प्रकार के आभूषण से श्रृंगार किया गया । 16 प्रकार के फूलों से पूजन, 16 प्रकार के पत्तियों का बंडल बनाकर पूजा में चढ़ाए जाएंगे। 16 प्रकार के फल, 16 प्रकार की मिठाई, 16 प्रकार के नमकीन, 16 प्रकार की चटनियां, 15 उत्कार की सब्जी बनाकर उनका पूजन और भोग प्रसाद लगाया गया।शहर में पर्व महाराष्ट्रीयन परिवारों में परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।


