
ग्राम बिटकुला के इन ग्रामीणों की आंखों में डर है, और हाथों में है उम्मीद का एक छोटा सा आवेदन पत्र। तपती धूप और भीषण गर्मी की परवाह किए बगैर ये अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में उठाए, प्रशासन से अपने बसेरे को बचाने की गुहार लगाने पहुंचे हैं।ग्रामीणों का कहना है कि वे सालों से इस सरकारी जमीन पर रह रहे हैं। इनके परिवारों ने इसी जमीन को अपना घर बनाया, पीढ़ियों ने यहीं जीवन गुजारा। लेकिन अब बेदखली का आदेश उन्हें बेसहारा करने वाला है। उनका दर्द साफ झलकता है जब वे कहते हैं कि अगर प्रशासन ने उन्हें हटाया तो उनके पास सिर छुपाने तक की जगह नहीं रहेगी।ग्रामीणों ने बताया कि जब उन्होंने वर्षों बाद अपने पक्के मकान का सपना पूरा करने की कोशिश की, तो गांव के एक व्यक्ति टुकेश्वर पाटनवार ने उनके निर्माण कार्य पर आपत्ति दर्ज करवा दी। उसका कहना है कि यह जमीन गौचर भूमि है।इसके चलते प्रशासन ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है, जिससे ग्रामीणों की मुश्किलें कई गुना बढ़ गई हैं।

इन ग्रामीणों का तर्क है कि अगर यह जमीन वाकई विवादित थी, तो इतने वर्षों तक उन्हें यहां रहने की अनुमति क्यों दी गई।आज जब उनके सिर पर छत बनने वाली थी, तो कानूनी विवाद खड़ा कर दिया गया। ग्रामीणों का दर्द यह भी है कि अब बारिश का मौसम नजदीक है और बिना पक्के मकान के जीना बच्चों-बुजुर्गों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।ग्रामीणों की एकमात्र मांग है कि प्रशासन उन्हें उस जमीन का पट्टा प्रदान करे, जिस पर वे वर्षों से बसे हुए हैं। ताकि वे कानूनी रूप से सुरक्षित रह सकें और अपने बच्चों को एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य दे सकें। ग्रामीणों ने नम आंसू से कहा हम सालों से यहां रह रहे हैं। अब हमारे मकान पर रोक लगाई जा रही है। हम चाहते हैं कि सरकार हमें इस जमीन का पट्टा दे ताकि हम बिना डर के अपने परिवार के साथ रह सकें। गर्मी की तपन से ज्यादा इन ग्रामीणों के मन में छाए बेघर होने के भय ने उन्हें बेहाल कर दिया है। अब देखना होगा कि प्रशासन इनकी इस मानवीय अपील पर संवेदनशीलता दिखाता है या नहीं।