
सरकंडा के अशोक नगर में पानी और बिजली की किल्लत पर लोगों का गुस्सा फट पड़ा। महीनों से परेशान जनता ने वार्ड 57 और 58 के पार्षदों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मुख्य सड़क पर चक्काजाम कर दिया। सवाल उठ रहा है – जब जनता मर रही है प्यास से, तब पार्षद और नगर निगम कहां सोए हैं। बिलासपुर का सरकंडा इलाका, जहां भीषण गर्मी की मार झेल रहे अशोक नगर अटल आवास के लोग अब प्रशासन के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। डेढ़ से दो महीने से पानी-बिजली की मार झेल रहे लोगों का धैर्य आखिरकार जवाब दे गया।वार्ड 57 और 58 के बीच बसे इस इलाके में पानी की बूंद-बूंद को तरसती जनता जब थक हार गई, तो मंगलवार को महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे बीच सड़क पर बैठ गए।

मुख्य मार्ग को पूरी तरह जाम कर दिया गया।नारे लगे सिस्टम मुर्दाबाद पार्षद हटाओ, समस्या मिटाओ।प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पार्षद ओमप्रकाश पांडे और पुरुषोत्तम पटेल को दो महीने से समस्या बताई जा रही है, लेकिन दोनों नेताओं ने आंखें मूंद रखी हैं। अटल आवास और आसपास के लोगों के साथ भेदभाव जैसा व्यवहार हो रहा है।चिलचिलाती धूप में महिलाएं गोद में बच्चों को लेकर सड़क पर डटी रहीं। उनका कहना था जब तक पानी-बिजली नहीं, तब तक सड़क खाली नहीं।लोगों ने साफ कहा कि अब आश्वासन नहीं, एक्शन चाहिए वरना अगला पड़ाव नगर निगम का घेराव होगा।प्रशासन की उदासीनता का आलम यह रहा कि चक्काजाम के घंटेभर बाद तक कोई अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। घंटों तक ट्रैफिक ठप रहा, लेकिन किसी जिम्मेदार ने सुध लेना जरूरी नहीं समझा।बाद में जब विरोध तेज होता गया तो वार्ड प्रतिनिधि मौके पर आए और लोगों को मनाने की कोशिश की। लेकिन इस बार जनता ने साफ कह दिया अब सिर्फ वादा नहीं, समाधान चाहिए।बात बिगड़ती देख अधिकारियों ने जल्द कार्रवाई का भरोसा दिलाया।

यह पूरा मामला उस वक्त उजागर हुआ जब छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्यभर में “सुशासन तिहार” चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य जनता की समस्याओं का त्वरित निराकरण और योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करना है। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री स्वयं इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं, अफसरों को फटकार लगाई जा रही है, और दावा किया जा रहा है कि शासन लोगों के दरवाज़े तक पहुंच रहा है। लेकिन ज़मीनी हकीकत अशोक नगर जैसे इलाकों में कुछ और ही कहानी बयां कर रही है, जहां जनता पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि जानबूझकर सुशासन तिहार को नाकाम बना रहे हैं, या फिर वे इसे लेकर पूरी तरह से लापरवाह हैं? दोनों ही स्थितियों में सीधा नुकसान जनता को हो रहा है और शासन की साख पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।