
छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक, झीरम घाटी नक्सली हमले को आज 12 साल हो गए हैं। 25 मई 2013 को हुआ यह हमला आज भी न सिर्फ राज्य की राजनीति बल्कि आम जनमानस के लिए एक गहरा जख्म बना हुआ है। और अब, बरसी से ठीक पहले एक बार फिर सियासत गरमा गई है। वह शाम आज भी लोगों को सिहरन में डाल देती है जब नक्सलियों ने काफिले पर हमला कर कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और सुरक्षा बल के जवानों की जान ले ली थी।नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा जैसे बड़े नाम इस हमले में शहीद हो गए थे।

12 साल बाद भी हमले के पीछे की सच्चाई सामने नहीं आ पाई है। कांग्रेस इस मामले को लेकर केंद्र सरकार पर निष्क्रियता का आरोप लगा रही है। सांसद ज्योत्सना महंत ने कहा कि झीरम को लेकर अब चुप्पी टूटनी चाहिए और घटना के हर पहलू की सच्चाई सामने आनी चाहिए।सांसद ज्योत्स्ना महंत ने कहा कि हम चाहेंगे जितनी जल्दी हो जीरम की जड़ तक पहुंचे सरकार। हमारे बहुत सारे साथी इसमें मारे गए हैं, और आज भी उनका परिवार न्याय की राह देख रहा है।

दूसरी ओर भाजपा और केंद्र सरकार ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि नक्सलियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई हो रही है और जीरम को न्याय जरूर मिलेगा। केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू ने कहा कि सरकार मौन नहीं है, बल्कि पूरी गंभीरता से नक्सलवाद पर प्रहार कर रही है।केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमारे जवान बहादुरी से लड़ रहे हैं।

गृहमंत्री ने कहा है कि मार्च 2026 तक देश नक्सली मुक्त होगा। जीरम को न्याय मिलेगा। गृह मंत्रालय का दावा है कि अगले एक साल में नक्सलवाद का पूरी तरह से खात्मा कर दिया जाएगा। लेकिन असल सवाल यह है कि जब तक झीरम जैसे हमलों की तह तक जाकर दोषियों का पर्दाफाश नहीं होता, तब तक क्या शहीदों और उनके परिवारों को असली न्याय मिल पाएगा।