शादी जैसे बंधन का सफर पति-पत्नी के लिए आसान नहीं होता ये तो कई सुना था; लेकिन पत्नी के लिए मायके से ससुराल जाने का सफर इतना मुश्किल होगा ये लापता लेडीज देख के पता चला। ये फिल्म 2001 के समयकाल पर बनी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित सामाजिक, हास्य व्यंग से भरपूर फिल्म है जो हमारे विचारों पर, फैसलों पर बारीकियों से सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म लड़कियों पर बंधी अदृश्य बंधनों पर सवाल करने और घूंघट ओढ़कर अपने किस्मत को स्वीकार करके सपने से समझौता करने वाली स्थितियों पर विचार करने के लिए आपको मजबूर करती है।
फिल्म आपको शुरू से आखरी तक बहुत हंसाती है और बहुत से चली आ रही प्रथाओं चिंतन करने के लिए आप पर सवाल भी छोड़ती है। सिनेमा हमें हर साल समय-समय पर इस तरह के फिल्मों के माध्यम से आत्मद्वंद करने के लिए मजबूर करती है। हालाकि ऐसे फिल्मों के साथ एक चीज जो हमें अक्सर सुनने-देखने को मिलती है की यह लिमिटेड रीलीज(कम जगह सिनेमाघरों में चल रही है) फिल्म है. इन फिल्मों का ज्यादा प्रमोशन नहीं किया गया। ये ऐसी फिल्मों को लेकर अपवाद होती है हालाकि हाल ही में आई 12th फैल इस पर अंकुश भी लगाती है।

फिल्म केवल 2 घंटे की है जो बहुत ही सटीक और बिना अपने विषय से भटके अपने कहानी के जड़ पर शुरू से लेकर फिल्म के अंत तक कायम रहती है। फिल्म आपको कहीं पर बोर भी नहीं करती है। इसे फिल्म को लेकर बस इतना समझ लीजिए कि एक बेटी का हाथ कब, कहां, कैसे, किसे देना है इसका फैसला बच्चों के भविष्य और सहपरिवार(बेटी सहित) के मंजूरी से फैसला लिया जाए तो बेहतर होगा। बेटी आपके घूंघट के सपने उनके सपने को धुंधला तो नहीं कर रही है इसका अंदाजा जरूर लगाना चाहिए।
बच्चों के नए कपड़ों की क्वॉलिटी से ज्यादा नैतिक सोच पर विचार
बेटों के सूट कपड़े की क्वॉलिटी से ज्यादा अपने बेटों के नैतिक मूल्यों और विचारों पर जोर डालेंगे तो हमारे लिए बेहतर होगा। क्योंकि हाथ थामने वाला मोटर साइकल में भरी पेट्रोल को निकाल कर कहीं आपकी बेटी को ही आग ना लगा दे; इसका विचार काफी चिंताजनक है। इसलिए घूंघट से चेहरा दिखे ना दिखे आपको अपने बच्चों के मेहनत का रिजल्ट जरूर देखना चाहिए। क्या पता अगला स्वामीनाथन आपके घर से ही हो। “नए सफर है नया हौसला” अपने बच्चों के कदम से कदम मिलाकर उनके रीड की हड्डी बनकर चलिए; उन्हें अधिक ताकत मिलेगी।
किस्सा किरदारों का:
फिल्म हो या हकीकत गुंजन कुमार जैसे लोगों की प्रेम कहानियां अक्सर अधूरी छोड़ दी जाती है। प्रेम के बस में सवार दूर जाती अपनी पसंदीदा लड़की को अपने गांव में अपना समझकर आने की आस लगाए बैठे, चिट्ठी-पत्री से प्रेम संवाद की गुंजाइश पर मुस्कान के साथ विदा कर देते हैं। ये गुंजन कुमार का प्रेम धुंधले विश्वास के साथ अक्सर अधूरा ही छोड़ जाता है। फिलहाल फिल्म में जया, फुलकुमारी और दीपक कुमार जैसे कैरक्टर के बाद जिसने सब को अपने अभिनय से मन मोह लिया वो हैं हमारे आपके भोजपुरिया भईया रवि किशन. वो जब-जब स्क्रीन के सामने आते हैं आपके चेहरे पर एक मुस्कान दे जाते हैं। पान दबाए अपने स्टेशन के हवलदार से संवाद करते और उनके मासूमियत से भरे जवाब आपको हसनें पर मजबूर कर देते हैं।
निष्कर्ष के तौर पर कहें तो लापता लेडीज एक बहुत अच्छी फिल्म है जिसे आपको, अपने परिवार के साथ जरूर देखना चाहिए। आमिरखान प्रोडक्शन कंपनी में बनी ये फिल्म किरण राव के निर्देशक द्वारा एक अच्छे सिनेमा का अनुभव कराती है। सेट डिजाइन, 2001 के समयकाल में फिल्म को दिखाना इसका अंदाजा आप अमिरखान के फिल्म के डिटेलिंग से विचार कर सकते हैं अर्थात आपको कहीं भी फिल्म निराश नहीं करेगी। वहीं इसके गाने आपके कानों को सुकून देते हैं. साथ ही बीच-बीच में इसके सटायर डायलॉग आपको बहुत गंभीरता से सोचने के लिए विवश करती है। इसलिए अपने ख्वाइशों पर समझौता मत कीजिए जाइए अपने पास के सिनेमा घरों में इसे जरूर देखिए।