देश की शांति और सामाजिक सद्भाव के लिए धार्मिक प्रदर्शनों पर विचार*
श्याम गुप्ता
भारत, एक विविधतापूर्ण देश, जहाँ अनेक धर्म पंथ और संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रही हैं, वहाँ धार्मिक सामाजिक स्पर्धा से उत्पन्न होने वाले तनाव को देखते हुए एक गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। आज के समय में, जहाँ एक ओर भारतीय संस्कृति की महानता का गुणगान होता है, वहीं दूसरी ओर धर्म और जातिवाद के नाम पर राजनीति का खेल भी खेला जा रहा है। इससे न केवल सामाजिक सद्भाव बिगड़ रहा है, बल्कि देश की विकास यात्रा भी प्रभावित हो रही है।
धार्मिक प्रदर्शनों का आयोजन, जो सार्वजनिक स्थलों पर होता है, अक्सर आम जनता के लिए असुविधा का कारण बनता है। इससे न केवल यातायात में बाधा उत्पन्न होती है, बल्कि कई बार यह धार्मिक स्पर्धा का रूप भी ले लेता है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि क्या धार्मिक प्रदर्शनों को सार्वजनिक स्थलों पर आयोजित करना उचित है? क्या इससे देश की शांति व्यवस्था पर असर पड़ता है?
इस विषय पर सामाजिक कार्यकर्ता हमारे आदरणीय श्री श्याम गुप्ता जी का मानना है कि यदि हर धर्म के लोग अपने धार्मिक प्रदर्शनों को सड़कों पर ले आएंगे, तो इससे देश की शांति व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा। उनका सुझाव है कि धार्मिक प्रदर्शनों के लिए शासन और प्रशासन से अनुमति और जानकारी अनिवार्य होनी चाहिए। इससे न केवल व्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि धार्मिक स्पर्धा को भी रोका जा सकेगा।
अंत में, श्याम जी का यह कहना है कि धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए, हमें एक दूसरे के धर्म और आस्था के प्रति सहिष्णुता बरतनी चाहिए। धार्मिक सामाजिक स्पर्धा को बंद करके, हमें देश को जोड़ने के काम में लगना चाहिए, ताकि आम जनता देश से और राष्ट्रवाद से जुड़ सके।
_जय हिन्द जय भारत