बिलासपुर का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहां अपने अधिकार और जायज मांगों के लिए भी आंदोलन का सहारा लेना पड़ता है। चाहे रेलवे जोन हो हाई कोर्ट या फिर मौजूदा रेलवे स्टेशन की पुरानी बिल्डिंग का संरक्षण का मामला हो, एक बार फिर इस मुद्दे पर आंदोलन की तैयारी है।
इतिहास गवाह है कि जिन्हें अपने इतिहास की फिक्र नहीं होती उनका जिक्र भी इतिहास में नहीं होता। जिन्हें जन भावना की फिक्र नहीं है उनसे भला ऐसी उम्मीदें बेकार है कि वे ईंट पत्थरों की हिफाजत करें। बिलासपुर रेलवे स्टेशन की पहचान उसकी पुरानी शानदार इमारत है। स्टेशन की यह बिल्डिंग 1889 में अंग्रेजों ने बनाई थी। उस वक्त यहां नागपुर- बंगाल रेल लाइन शुरू हुआ था लेकिन कहा जा रहा है कि इसका कोई पुरातात्विक इतिहास नहीं है और यह वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सूची में भी शामिल नहीं है, इसलिए रेलवे के अफसर इसे हेरिटेज बिल्डिंग नहीं मानते। लिहाजा बिलासपुर रेलवे स्टेशन को एयरपोर्ट की तर्ज पर संवारने के लिए अब इस बिल्डिंग की बलि ली जा रही है । गति शक्ति के तहत 392 करोड रुपए का ठेका हो चुका है। मेसर्स झाझरिया डीवी जेवी करीब 3 साल में यह काम पूरा करेगी । योजना के तहत वर्तमान 6 नंबर प्लेटफार्म भविष्य में दो नंबर प्लेटफार्म बनेगा, जिससे सीधे चुचुहिया पारा अंडर ब्रिज तक ले जाने के लिए पुरानी बिल्डिंग आड़े आ रही है। योजना के अनुसार लोको खोली ओर पर प्रवेश द्वारा टिकट घर के साथ नया प्लेटफार्म बनाया जाएगा। बीच के हिस्से में सिर्फ मालगाड़ियां आएंगी। इसलिए पुरानी बिल्डिंग को तोड़ने की योजना है। रेलवे के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि ऐसा नहीं होगा लेकिन जानकार बता रहे हैं कि भीतरी ही भीतर इसकी तैयारी है, जिसे लेकर अब जन आंदोलन की तैयारी है। और इसका नेतृत्व बिलासपुर प्रेस क्लब करेगा। इसी पर मुद्दे पर मंगलवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में अहम बैठक हुई, जहां शहर के चिंतनशील लोगों ने अपने विचार रखें। बिलासपुर प्रेस क्लब की अगुवाई में मंगलवार को रेलवे स्टेशन की 134 साल पुरानी इमारत के संरक्षण को लेकर सर्व दलीय बैठक की गई। इस मौके पर सभी लोगों से सुझाव लिए गए। बैठक में वकील सुदीप श्रीवास्तव ने जानकारी दी कि गति शक्ति परियोजना के तहत वर्षों पुराने बिलासपुर स्टेशन की इमारत को तोड़ने की तैयारी है। जबकि अधिकारी चाहे तो प्लेटफार्म नंबर- 6, 7 और 8 के लिए तैयार योजना में थोड़ा सा बदलाव कर पुरानी बिल्डिंग को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह इमारत ब्रिटिश स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। वरिष्ठ नागरिक द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि इससे पहले भी रेल मंत्रालय देश के कई रेलवे स्टेशन को ऐतिहासिक मानकर संरक्षित कर चुका है। ऐसे में बिलासपुर रेलवे स्टेशन की इमारत को बचाए रखने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए।
रवि बनर्जी ने कहा कि रेल प्रशासन अड़ियल रवैया अपना कर इस वर्षों पुरानी बिल्डिंग को हर हाल में तोड़ना चाहता है। उन्होंने कहा कि शहर में राजनीतिक क्षमता की कमी के कारण यह स्थिति निर्मित हो रही है। शिवा मिश्रा ने कहा कि हवाई अड्डे की तर्ज पर रेलवे स्टेशन को सजाए जाने का विरोध नहीं है। मगर पुरानी इमारत को तोड़े बगैर विकास किया जाए, तो बेहतर होगा। सालों पुरानी इस इमारत को संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विरासत को खत्म कर नया स्ट्रक्चर खड़ा नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को लेकर रेलवे जीएम सहित सभी राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधियों के पास जाकर इसे बचाने की पहल की जानी चाहिए। अनिल तिवारी ने कहा कि भले ही रेलवे स्टेशन धरोहर की सूची में ना हो, मगर वर्षों पुरानी इस बिल्डिंग का संरक्षण होना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस देश का इतिहास सुरक्षित नहीं होता, उनका भविष्य भी सुरक्षित नहीं रहता। विद्या गोवर्धन ने कहा कि दलगत राजनीति से उठकर इस मुद्दे पर सभी को सामने आना चाहिए। हर हाल में बिना किसी विवाद या लड़ाई-झगड़े के रेलवे की इस बिल्डिंग को बचाए जाने की जरूरत है। अरविंद दीक्षित ने कहा कि यह बिल्डिंग शहर की पहचान है। धरोहर को बचाए जाना सभी की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले रेलवे प्रशासन से बात की जाए, उसके बाद क्रमबद्ध आंदोलन किया जाए। राकेश शर्मा ने इस मौके पर प्रेस क्लब के प्रयास की सराहना की और अपनी तरफ से आर्थिक सहयोग का भरोसा दिया।
इस मौके पर मनीष अग्रवाल ने कहा कि प्रेस क्लब की अगवाई में यह आंदोलन जरूर होना चाहिए। सभी जनप्रतिनिधियों को इसमें जोड़ा जाए। जिले के साथ-साथ संभाग के भी जनप्रतिनिधियों को जोड़कर बिलासपुर से रायपुर, रायपुर से दिल्ली तक विरोध दर्ज किया जाए। प्रथमेश मिश्रा ने कहा कि पुरानी बिल्डिंग को तोड़ा जाना उचित नहीं है। नई बिल्डिंग भी इसी पुरानी बिल्डिंग के तर्ज पर हो। उन्होंने आम जनता से भी इस मुद्दे पर समर्थन लेने की बात कही। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सबसे पहले रेलवे जोन के जीएम से मिलकर वस्तु स्थिति पूछी जाए। अगर भवन को तोड़ने की योजना है, तो विरोध दर्ज कराया जाए। इसके अलावा संभाग के सभी विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जाए। जानकारी मिल रही है कि रेलवे की जीएम और डीआरएम भी नहीं चाहते हैं कि इस ऐतिहासिक बिल्डिंग को तोड़ा जाए लेकिन गति शक्ति के अधिकारी उनके ट्रांसफर या फिर रिटायर होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसके बाद वे अपने मकसद में कामयाब हो सकते हैं। इसलिए एक बार फिर बिलासपुर वासियों को एक जुट होकर बड़ा आंदोलन करना होगा, जिससे बिलासपुर की इस पहचान को बचाया जा सके।