बिलासपुर ज़िले के बिल्हा विकासखंड अंतर्गत मुधीपार गांव का एक परिवार इन दिनों सामाजिक कुरीति का शिकार होकर गहरे संकट से गुजर रहा है। पीड़ित प्रेमदास बंजारे और उनका पूरा परिवार उस सामाजिक व्यवस्था की सजा भुगत रहा है, जिसमें अपने ही गोत्र में विवाह को अब भी अपराध समझा जाता है। प्रेमदास ने बताया कि अपनी आपसी दुश्मनी के कारण बहाना बनाकर हमें समाज से बहिष्कार किया गया है। विवाह होते ही गांव के तथाकथित समाज के ठेकेदारों ने परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और पूरे परिवार को सामाजिक बहिष्कार की कठोर सजा सुना दी। नतीजतन, आज यह परिवार सामाजिक, मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना झेलने को मजबूर है। गांव में प्रेमदास की आजीविका का साधन उनकी छोटी सी दुकान थी, लेकिन समाज के दबाव में अब गांववाले उनकी दुकान से सामान नहीं खरीदते। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि दुकान बंद होने की कगार पर है। रोटी कमाने का ज़रिया खत्म हो चुका है और जीवन बेहद कठिन हो गया है।पीड़ित प्रेमदास का कहना है कि गांव के सरपंच और भंडारी ने मिलकर यह बहिष्कार कराया है। न केवल रिश्तेदारों और ग्रामीणों से उनका संपर्क तोड़ दिया गया है, बल्कि सभी सामाजिकजनों को आदेश दिया गया है कि वे बंजारे परिवार से रोटी-बेटी का संबंध खत्म कर दें। इस सामाजिक बहिष्कार ने पूरे परिवार को मानसिक रूप से भी तोड़ कर रख दिया है आख़िरकार, न्याय की आस में प्रेमदास अपनी बुजुर्ग मां के साथ कलेक्टर कार्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने प्रशासन से इस अन्याय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें और उनके परिवार को समाज में फिर से सम्मानपूर्वक जीने का हक दिया जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। यह मामला सिर्फ एक परिवार का नहीं, बल्कि उन सामाजिक कुरीतियों और पिछड़ी सोच पर सवाल है, जो आज भी इंसानों को इंसानों से काटकर, सामाजिक रूप से अलग-थलग करने का कार्य कर रही हैं। यह ज़रूरी है कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दोषियों के खिलाफ कानूनी कदम उठाए, ताकि इस तरह की घटनाएं भविष्य में किसी और के साथ न हों।