
बिलासपुर शहर की पहचान कही जाने वाली अरपा नदी इस बार इतिहास में पहली बार छठ घाट तक पूरी तरह सूख गई है। कभी श्रद्धा और जीवन की प्रतीक रही यह नदी अब सिर्फ नाम की नदी बनकर रह गई है। पांच महीने पहले भैसाझार बैराज से छोड़ा गया पानी खत्म हो चुका है, और अब नदी तल पूरी तरह नजर आ रहा है।नदी के किनारे जहां कभी बच्चे खेलते और महिलाएं पूजा करती थीं, अब वहां धूल उड़ रही है। तोरवा और देवरीखुर्द जैसे इलाकों में भूजल स्तर गिरने से बोरिंग सूखने लगे हैं, और जहां पानी है भी, वहां से बदबूदार, गंदा पानी निकल रहा है।

इसके पीछे बेतहाशा रेत खनन, जल प्रबंधन की कमी और प्रशासन की उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।अरपा को बचाने के लिए हाईकोर्ट तक आदेश दे चुका है और 125 करोड़ की लागत से दो बैराज बनाए जा रहे हैं। लेकिन ठेकेदार की लापरवाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से यह काम दो साल पीछे चल रहा है। भैसाझार डायवर्सन में पानी तो मौजूद है, लेकिन जल संसाधन विभाग के पास इसे नदी में छोड़ने का कोई प्लान नहीं है।गर्मी की मार, जल संकट और सरकारी खामोशी ने अरपा की सांसें छीन ली हैं। अगर अब भी ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह नदी सिर्फ तस्वीरों और किताबों की याद बनकर रह जाएगी। अरपा आज इंसानी लापरवाही का आइना बन गई है।