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Sunday, June 22, 2025
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श्रुत पंचमी के पावन अवसर पर बिलासपुर में निकली माँ जिनवाणी की भव्य पालकी यात्रा

बिलासपुर ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाए जाने वाले पावन श्रुत पंचमी पर्व के अवसर पर बिलासपुर जैन समाज द्वारा माँ जिनवाणी की भव्य पालकी यात्रा का आयोजन किया गया। यह आयोजन आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज, नवाचार्य 108 श्री समय सागर जी महाराज एवं गुरु मां 105 आर्यिका श्री अखंडमति माताजी के ससंघ सान्निध्य और आशीर्वाद में संपन्न हुआ। धर्मप्रेमियों ने “आदिनाथ भगवान की जय” एवं “जिनवाणी माता की जय” के जयघोषों के साथ यात्रा को भक्तिपूर्वक सम्पन्न किया। पालकी यात्रा का विशेष आकर्षण षट्खण्डागम ग्रंथ था, जो वर्ष में केवल श्रुत पंचमी के दिन ही दर्शन हेतु सरकंडा जैन मंदिर से बाहर लाया जाता है।

इस दुर्लभ ग्रंथ के दर्शन मात्र से श्रद्धालु धन्य हुए। महिलाओं को इस ग्रंथ के केवल दूर से दर्शन की अनुमति थी, जबकि पुरुष वर्ग इसे हाथ से उठा सकते थे पर पढ़ नहीं सकते थे। यात्रा में ढोल-नगाड़ों, बैंड, दो अश्वों पर सवार धर्म चक्र, कलश लिए महिलाएं और सफेद वस्त्रधारी पुरुषों की भव्य कतारें शामिल रहीं। पालकी यात्रा प्रातः 7 बजे क्रांति नगर जैन मंदिर से प्रारंभ होकर व्यापार विहार रोड, श्रीकांत वर्मा मार्ग, मैग्नेटो मॉल, गायत्री मंदिर होते हुए पुनः क्रांति नगर जैन मंदिर में संपन्न हुई। यात्रा के बाद श्रीजी का अभिषेक एवं शांतिधारा आर्यिका माताजी के मुखारविंद से सम्पन्न हुई। इसके पश्चात श्रद्धापूर्वक पूजन एवं प्रवचन का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हुए।

यात्रा में भाग लेने वाली सभी महिलाओं ने पंचरंगीय जैन ध्वज के अनुसार निर्धारित रंग की साड़ियाँ पहनीं। महिला मंडलों एवं अन्य समूहों ने अपने-अपने रंग निर्धारित किए थे, जिससे यात्रा की शोभा और अधिक बढ़ गई। अष्टकुमारियाँ सफेद साड़ियों में शोभायमान रहीं और पुरुष वर्ग सोले के वस्त्रों एवं सफेद कुर्ता-पैजामे में यात्रा का हिस्सा बने। यह पहला अवसर था जब माँ जिनवाणी की आराधना एवं आर्यिका माताजी के ससंघ सान्निध्य का लाभ पूरे बिलासपुर जैन समाज को प्राप्त हुआ। यात्रा में तीनों जैन मंदिरों के सदस्य, महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे उत्साहपूर्वक सम्मिलित हुए। सुबह 6:30 बजे सरकंडा एवं सन्मति विहार मंदिरों में मंगला आरती, अभिषेक, शांतिधारा के साथ दिन की शुरुआत हुई और दोपहर में स्वाध्याय के दौरान माताजी द्वारा षट्खण्डागम ग्रंथ का सार समझाया गया।

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